Thursday, April 15, 2010

-------आवश्यकता एक 'कलियुगी "राम" की'-----

इस आतंक से भयभीत दुनिया को वक्त की गुजारिस है,हवाओं का सन्देश है और हमारी ये प्रार्थना है कि,माँ एक ऐसे लल्ले को जन्म दे जो कलियुगी राम के नाम से जाना जाये और इस दहसतगर्दी से निकाल के हमें अपनी उर्जा कि याद दिलाये......हमें ये नहीं पता है कि लोग आतंक क्यों फैलाते हैं,उसका मकसद क्या है??लेकिन इतना जरुर जानता हूँ कि ये आतंकी भी एक माँ से पैदा हुए हैं,क्या??मैं उस माँ को दोष दूँ जिसने नौ महीने अपने कोख कि छत्रछाया दी,और(जब वह माँ की चेहरा देखने लायक हुआ तो) उसे दुनिया की रौनक दिखायी,क्या आतंकी जन्म से ही क्रूर होते हैं ??क्या उन्हें ये नहीं पता किजिसे हम निशाना बनाते हैं ,वो भी मेरे तरह ही अपने संतान कि माँ है और उस माँ ने तो उन आतंकियों को कभी गुस्से मैं थप्पड़ भी तो नहीं मारा,वो तो उसका संतान था...लेकिन!!!तुमने उसे बेदर्द मौत क्यों दी शायद तुम उसके संतान कि हितैसी हो जो माँ कि प्यार को नहीं समझा ,या फिर तुम्हारी माँ ही नहीं ,क्या गंदे बदलो से भरे आसमान से टपके हो या फिर तुम्हें माँ का प्यार नहीं मिला,क्या तुम्हारी माँ ने तुम्हें आतंकी बनाया या फिर तुम आपनी माँ की सुख के लिए दूसरों की माँ को मारते हो, तुमने कभी पूछा अपनी माँ से कि जिसे तुम सुख का कारन समझते हो उससे माँ कि उस कोख को कितनी घृणा होती है,जिसे पहले कभी अपनी जान से प्यारी मानती थी...वो आज कितना शर्मसार है, उसका सर इंसानों के सामने शर्म से झुका हुआ है जैसे वो खुद आतंकी हो ...हाँ वो ठीक सोचती है क्योंकि उसने तुम जैसे क्रूर को जना... 'माँ' उसके पास तो सबकुछ है (दुर्गा जैसी शक्ति ,प्यार,स्नेह कि मूर्ति)लेकिन वो अपने संतान को जनने से पहले नहीं पहचान सकती और उसे इसकी आवश्यकता भी नहीं पड़ी,उसने तो सपने में भी ऐसा नहीं सोचा होगा...उसे तो सिर्फ तुम्हारे वो दो भोले-भाले हंसीं से भरी आँखे याद है...जो आज क्रूरता का पर्याय बन गया है...क्या इस क्रूरता का कारण हमारा समाज है...तुम्हारे समाज से भटकने का कारन हमारे सामाजवासी हैं...क्या?? इन लोगों ने तुम्हारे माँ को दर्द दिया...जिससे तुम खपा हो यदि हाँ तो तुमसे अच्छा इन्सान कोई नहीं है ...तुम्हें तुम्हारा लछ्य जरुर मिलेगा क्योंकि तुम एक सर्वासक्तिसाली "माँ" के लिए लड़ रहे हो...बेसक तुम अविजेय हो...तुमसे कोई नहीं जीत सकता...तुम्हारी विजय निश्चित है...
लेकिन!!!माँ से कभी पूछा कि जिस समस्या कि समाधान के लिए तुम लड़ रहे हो उसका निदान क्या है?? क्या तुम ये समझते हो कि वो नासमझ है ,उसे समाज से लड़ना नहीं आता...या फिर तुमने अपने माँ के मरने के बाद बदले कि आग में ये रास्ता चुना...यदि हाँ तो तुमने सामाज के निर्दोषों को क्यूँ मारा...
क्या??रंगमंच के सामने बैठे कला देखने वाले सब तुम्हारे दुश्मन हैं,बड़े बड़े होटलों में ठहरे लोग तुम्हारे खून के प्यासे हैं...संसद भवन में बैठे हर कोई तुम्हारी बुराई के बारे में सोचते हैं...या फिर तुम्हारे पास इन बातों को सोचने का वक्त ही नहीं है...
क्या हम विद्यार्थी तुम्हारे समस्या का समाधान हैं जिसे आये दिन आँखों में दुःख के आंसू दिए जाते हो ......तुम हमें डराना चाहते हो या फिर हमें अपने बेतुके मिशन में शामिल करना चाहते हो ,तुम हमारी ब्रेन वश करना चाहते हो ....तो ठहरो ।।।।।
हम तुम्हें बता दें कि वो गुस्से से उबलते जवानी के खून हमारे अन्दर भी है जो आजतक तुमलोगों पर रहम करते आया है, तुम्हें तो शुक्रगुजार हमारे माता-पिता एवं गुरुओं के होने चाहिए जिनकी शिक्षा ने हमें अपने कर्तब्यों में बाँध रखा है ...लेकिन एक तुम हो जो मनुष्य होते हुए भी जंगली कुत्तों कि तरह खून के प्यासे हो...
शायद ये प्रश्न तुम्हारे लिए अटपटे हों लेकिन!!!!!!!जरा ठहरो गौर से सोचो ये सारे प्रश्न हमारी समाज कि है जिसका कभी तुम भी एक अंग थे...ये तुम्हारे और हमारे हित के लिए है।

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